“22 अप्रेल पृथ्वी दिवस पर विशेष” पृथ्वी पर पीने के पानी का संकट और उसका निवारण….

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“22 अप्रेल पृथ्वी दिवस पर विशेष” पृथ्वी पर पीने के पानी का संकट और उसका निवारण….

रेवांचल टाईम्स – पृथ्वी पर हवा, मिट्टी और पानी सभी आपस में जुङे हैं।यह अंतर्संबंध पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। पृथ्वी की सतह से पानी वाष्पित हो जाता है और फिर वर्षा के रूप में वापस जमीन पर गिरता है। यह चक्र पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। पृथ्वी पर 97 प्रतिशत भाग पानी है जिसमें से केवल 2.5 प्रतिशत से लेकर 2.75 प्रतिशत पानी पीने योग्य है। भारत पहली बार 2011 में पानी की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था। यूनिसेफ द्वारा 18 मार्च 2021 की जारी रपट के अनुसार भारत में 9.14 बच्चे गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। अनुमान है कि 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के सामने पानी का संकट होगा। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डबल्यू आर आई) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार यदि जल प्रबंधन से जुड़ी नितियों में सुधार नहीं किया गया तो इसके चलते आने वाले 27 वर्षों में भारत, चीन और मध्य एशिया को उसके जीडीपी के 7 से 12 प्रतिशत के बराबर का नुकसान हो सकता है।देश का 70 फिसदी भूजल स्रोत सुख चुके हैं और पुनर्भरण की दर 10 फिसदी से भी कम रह गई है। चेन्नई, बेंगलुरु जैसे शहर पानी की कमी को लेकर खबरों की सुर्खियों में है। इसलिए पीने योग्य पानी सभी को उपलब्ध करवाने और इसे संरक्षि‌त करने कानून बनाया गया।संविधान के भाग (9) में तीहतरवें संशोधन के अनुच्छेद 243(छ) में आर्थिक विकास एवं समाजिक न्याय के लिए योजना बनाने की शक्ति पंचायत को दिया गया है।जो ग्यारहवीं अनुसूची में लिस्टेड है।11 नबंर पर पेयजल व्यवस्था का उल्लेख किया गया है।
महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव उन्मूलन अधिनियम 1979 के अनुच्छेद 14(2)(एच) में महिलाओं के लिए पानी प्रावधानों का उल्लेख करता है
बाल अधिकार अधिनियम 1989 के अनुच्छेद 24(2)(सी) में स्वच्छ स्रोत से सुरक्षित पेयजल प्राप्त करना बच्चों का अधिकार है।
जल(प्रदूषण, नियंत्रण एवं रोकथाम) अधिनियम 1974 भारत में जल प्रदूषण रोकने हेतु महत्वपूर्ण कानून है।नदियों और धाराओं में अपशिष्टों के विसर्जन को रोकने हेतु दो प्रकार की नियामक विधियों की वयवस्था करता है।(1) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (2)राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड। 2024 में इस कानून में संशोधन किया गया है। मूल अधिनियम में जल प्रदुषण के उल्लंघनों के लिए जुर्माने के साथ- साथ डेढ साल से 6 साल तक की जेल की सजा का भी प्रावधान था। जबकि नए विधेयक में अधिकांश उल्लंघनों के लिए कारावास के प्रावधान को हटाने का प्रस्ताव है और इसकी जगह 10,000 रुपये से 15 लाख तक जुर्माना लगाया गया है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में भी जल गुणवत्ता सबंधि नियम शामिल है। मध्यप्रदेश पेयजल परिक्षण अधिनियम 1986 भी काफी महत्वपूर्ण है। ग्राम स्तर की जैव विविधता समिति को केन्द्रीय जैव विविधता अधिनियम 2002 की धारा(41) और मध्यप्रदेश जैव विविधता नियम 2004 के नियम (23) अनुसार अपने अधिकारिता क्षेत्र में पारिस्थितिकीय तंत्र को बनाये रखना है,जिसमें नदी संरक्षण सम्मलित है।
वही वन अधिकार कानून 2006 की धारा (5)(ख)कहता है कि ” यह सुनिश्चित करना कि लगा हुआ जलागम क्षेत्र,जल स्रोत और अन्य पारिस्थितिकीय संवदेनशील क्षेत्र पर्याप्त रूप से संरक्षित हैं।” मध्यप्रदेश पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) पेसा नियम -2022 की कंडिका 12(1)(ख) में भी उल्लेख किया गया है कि “ग्राम के क्षेत्र के भीतर स्थित प्राकृतिक संसाधनों को, जिसके अंतर्गत भूमि, जल तथा वन सम्मिलित हैं, उसकी परम्परा के अनुसार और संविधान के उपबंधों के अनुरूप और तत्समय प्रवृत अन्य सुसंगत विधियों का सम्यक् ध्यान रखते हुए, प्रबंधित करना” जैसे मजबूत प्रावधान भी हैं।
परन्तु सभी कानूनी प्रावधानों के बाबजूद जल स्रोत की दशा इस रिपोर्ट से उजागर हो जाता है।पर्यावरण दिवस के मौके पर जारी स्टेट ऑफ एनवायरमेंट(एसओई) रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, देश की कुल 603 नदियों में से 279 यानी 46 फीसद नदियाँ प्रदूषित हैं। राज्यों में महाराष्ट्र में सर्वाधिक 55 नदियाँ तथा मध्यप्रदेश में 19 नदियाँ प्रदूषित हैं। वहीं बिहार और केरल में 18-18 नदियाँ प्रदूषित हैं।
मध्य प्रदेश जल संसाधनों से समृद्ध है। तीन नदियां अर्थात नर्मदा, तापी ,माही और गंगा बेसिन की प्रमुख सहायक नदियों जैसे चंबल, सिंध, बेतवा ,केन और सोन का मूल स्थान मध्यप्रदेश है।नर्मदा बेसिन के उपरी हिस्सों में जंगल कटने के कारण जल संसाधन मंत्रालय की वाटर ईयर बुक 2014-15 के मुताबिक नर्मदा घाटी के जिलों में 1901-1950 के दौरान औसत वार्षिक वर्षा की तुलना 2006 – 2010 के बीच करने पर पता चलता है कि नर्मदा के उद्गम वाले जिले अनूपपुर में औसत वार्षिक वर्षा 1397 मिलीमीटर से घटकर 916 मिलीमीटर रह गई है।अपर नर्मदा के मंडला जिले में भी औसत वार्षिक वर्षा 1557 मिलीमीटर से घटकर 1253 मिलीमीटर रह गई है।केन्द्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन में जुटाए गए वार्षिक जल आंकङे अनुसार 2004- 2005 और 2014- 2015 की तुलना में 37 प्रतिशत प्रवाह में कमी आया है। मध्यप्रदेश की ग्रामीण अबादी हैंडपंप पर निर्भर है।अप्रेल 2023 के आंकड़े अनुसार प्रदेश में पांच लाख 64 हजार 290 हैंडपंप थे। जिसमें में से 14 हजार 191 हैंडपंप पानी नहीं दे रहा था। ‌‌‌‌‌
पेयजल के स्रोतों में कमी के निम्न कारण है जैसे प्रति व्यक्ति पानी की खपत में बढोत्तरी,भूजल में गिरावट, प्राकृतिक स्रोतों का जल प्रदुषित होना, परम्परागत जल स्रोतों में कमी आना अंधाधुंध पेङो की कटाई, मृदा अपरदन आदि प्रमुख है।
ऐसे में सरकार और समाज को मिलकर जमीनी स्तर पर ठोस प्रयास करने होंगे। जैसे जल स्रोतों को चिन्हित करना और उसके संरक्षण, प्रबंधन के लिये ग्राम सभा में चर्चा कर इसकी जिम्मेदारी गांव समिति को देना।
गांव की नदी, नाले के पास शौच रोकने तथा उसके दुष्परिणाम पर ग्राम सभा में चर्चा और गांव स्तर की निगरानी समिति का गठन करना।
गांव समुदाय के पारम्परिक जल संरक्षण, प्रबंधन और नियंत्रण के तरीके के लिए गांव स्तर की अध्ययन दल का गठन करना।
पास के नदी नाले के पानी को बरसात बाद रोकने हेतु बोरी बंधान या अन्य उपाय करना।
वही बर्षा जल को रोकने वाला गांव के आसपास जल संचय वयवस्था कायम करना।सूख चुकी सभी नदियों, जोहङो, झील, तलाबों और अन्य जल निकाय को पुनर्जीवित करना जल संकट का स्थाई निवारण हो सकता है।

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