ये कैसी आज़ादी, मुख्यालय से महज 500 मीटर की दूरी में बिजली के लिए तरस रहा बैगा परिवार…

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रेवांचल टाईम्स – मंडला, आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला आज भी आजादी के पक्षत्तर वर्षों के बाद भी ग्रामीण लोग अपनी मुलभूत सुविधाओं से वंचित नज़र आ रहे है, बिजली पानी सड़क, शिक्षा, जैसे अनेक सुविधाओं के लिए ग्रामीण तरस रहा है, वही विकास खण्ड मवई के कुछ ग्राम आज भी ऐसे है जहाँ आज़ादी के बाद भी लोग आजाद नज़र नहीं आ रहा है और जिले में राष्ट्रीय मानव बैगा जनजातियों के लोग आज भी बहुत पिछड़े हुए है जबकि इन्हें सरकार प्रतिवर्ष अनेकों योजनाओं संचालित कर रही है और लाखों करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही है पर वह योजनाएं जमी में कही भी नज़र नहीँ दिखाई पड़ रही हैं, सरकार और सरकारी आंकड़े तो पूर्ण बता रहे पर कैसे ये बड़ा सवाल है क्योंकि जिन्हें मुलभूत सुविधाएं मिलने चाहिए वह आज भी तरस रहे है और सरकार और जनप्रतिनिधियों ने तो कागजों में ही सबका विकास और उन्हें पूर्ण सन्तुष्ट कर आकड़ो पूर्ण कर कागजों का पेज भर दिया गया है पर आज भी बैगा परिवार कहने लिये तो सरकार की अनेकों योजना बेगाओ को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए समय-समय पर चलाई जाती है लेकिन सब कागजों में ही सिमट के रह जाता है बता दे की बात बहुत चर्चित मुख्यालय मवई का है जहां सिर्फ हर योजना ग्रामीण के लिए होती है लेकिन यहां के भ्रष्ट अधिकारी के चलते लोगों को ऐसे अनेक सुविधा से वंचित होना पड़ता है जिसका खामियाजा आम गरीब आदमी को भुगतना पड़ता है महज 500 मीटर की दूरी में बिजली पानी की सुविधा न होना एक चिंता का विषय है सरकार हमेशा से हामी भरती आई है की हर घर बिजली हर घर नल जल योजना लेकिन सब यह कागजों में ही है, मवई मुख्यालय में कई ऐसे मोहल्ले हैं जहां बिजली के पोल ही नहीं गडाये गए हैं ग्राम रमतीला में एक मोहल्ला है जहां पर बैगा परिवार के लोग बसाहट करते हैं कई वर्षों से बिजली के लिए शासन से मांग करतेआये है लेकिन आज तक शासन उनकी एक भी ना सुनी यह गंभीर विषय है रेवांचल टाइम दैनिक अखबार के द्वारा जनहित समस्याओं को लेकर समय-समय पर खबर के माध्यम से अवगत कराया जाता रहा है रेवांचल टाइम्स दैनिक अखबार का निवेदन है कि जल्द से जल्द बैगा परिवारों को बिजली की सुविधा दी जावे ताकि वह परिवारों को भी मुख्य धारा से जोड़ने का जो सरकार की अनेक नीतियां चल रही है वह सफल हो सके
इनका कहना है
कई बार हो गए सब लोगों के पास जाते हम बैगा है इसलिए हमारी बात कोई नहीं सुनता।
छत्तर धुर्वे

पहले मिट्टी तेल मिलता था तो उसमें काम चल जाता था लेकिन अब तो वह भी नहीं है तो रात में अंधेरे में ही रहना पड़ता है।
तानू बैगा

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