आदिवासी जिले में जिस की लाठी उसकी भेस जैसा चल रहा कानून…

आदिवासी जिले में जिस की लाठी उसकी भेस जैसा चल रहा कानून... जिसकी लाठी उसी की भैंस कहावत को सिद्ध करता जनजाति कार्य विभाग, वर्षों से जमे कर्मचारियों के चलते हो सकता है, चुनाव प्रभावित... रेवांचल टाईम्स - मंडला, इन दिनों मंडला जिले के सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य विकास विभाग अपनी कार्य प्रणाली को लेकर शुर्खियो में बना हुआ है। आये दिन नये नये भ्रष्टाचार, ग़बन, पद का दुरूपयोग होना आम बात हो गई है और शिकवा शिकायतें होती है पर केवल कागज़ों और नोटिस के बल पर ही जाँच और कार्यवाही हो रही पर कार्यवाही केवल खाना पूर्ती तक ही सीमित हो कर रह गई है। और उसका परिणाम आज तक हुई शिकायतों में निष्कर्ष निकल कर आ रहा हैं वहीं विभागीय नोटिस के बाद क्यों नही हो रही कार्यवाही क्या नोटिस की रस्म अदायगी होना है? दोषियों कार्यवाही न होना अर्थात विभागीय लापरवाही या राजनीतिक हस्तक्षेप? पीएमश्री दर्जा प्राप्त स्कूल की हो रही छवि धूमिल, जिला प्रशासन की संदिग्ध भूमिका मंडला जनजाति कार्य विभाग की कार्यप्रणाली आज संदेह के घेरे में है निरंतर विभागीय अधिकारियों के बेतुके के आदेश निर्देश मनमाने संलग्नीकरण एवं भ्रष्ट कर्मचारियों पर कार्यवाही न करना विभाग की पहचान बनी हुई है, आदिम जाति बाहुल्य जिलों में सरकार द्वारा विद्यार्थियों के विकास एवं कल्याण हेतु पर्याप्त मात्रा में योजना एवं फंड दिया जाता है किंतु इनकी सुविधा ना तो विद्यार्थियों को मिलती है और ना ही पात्र उपभोक्ताओं, अभिभावकों को? लापरवाह, भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ऊपर से नीचे तक जुगलबंदी करते हुए पूरे फंड का गबन करते हुए मौज कर रहे हैं, भ्रष्टाचार की शिकायतें तो होती है किंतु उच्च अधिकारी जांच के उपरांत भी दोषियों से पैसा लेकर कोई कार्यवाही नहीं कर करते हैं ऐसी एक घटना जिले के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मनेरी की है, जो निरंतर सुर्खियों का केंद्र बना हुआ है किंतु चाहे हम बात जिले के सहायक आयुक्त की करें या जबलपुर संभाग उपायुक्त की दोनों अधिकारी निरंतर भ्रष्टाचार को बढ़ावा एवं भ्रष्टाचार्यों के संरक्षक बने हुए हैं जांच करना और जांच के बाद सौदा करना इनके दिनचर्या में शामिल है, वहीं सूत्र बताते हैं कि जिले में ऐसे बहुत से विद्यालय हैं जहां शिकायतों के बाद जांच की जाती है और जांच के उपरांत पैसा ले देकर मामला रफा दफा कर दिया जाता है। मनेरी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मनेरी की कहानी यह है कि यहां वर्षों से हो रहे भ्रष्टाचार की पुष्टि होने के बाद भी दशकों से जमे शिक्षक एवं कर्मचारियों को नहीं बल्कि ईमानदार प्राचार्य जो मात्र 1 वर्ष पूर्व विद्यालय आए थे को दोषरोपण कर पैसे ना मिलने की वजह से निलंबित कर हटा दिया गया जनजाति कार्य विभाग की संदिग्ध कार्य प्रणाली आज जनचर्चा का विषय बनी हुई है? वर्षों से जमे कर्मचारियों की चल रही राजनीति से हो सकता है, लोकसभा चुनाव प्रभावित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मनेरी लंबे समय से फूल फ्रेश प्राचार्य के लिए तरस रहा है, यहां संपूर्ण कार्य अतिरिक्त प्रभारी प्राचार्य के रूप में संचालित होता रहा है जहां पदस्थ शिक्षकों कर्मचारियों के मध्य कार्य, प्रभार एवं शासकीय फंड को लेकर बहस बाजी, मारपीट, गुटबाजी भ्रष्टाचारी एवं ग्रामीणों को बुलाकर राजनीतिकरण जैसे अनेको अनियमिताएं निरंतर होती रही हैं जिसकी पुष्टि पूर्व सहायक आयुक्त ने अपने पत्र में की है इसके अलावा विद्यालय में शिक्षकों का विलंब से आना, मनमर्जी चले जाना, विद्यार्थियों से मारपीट एवं धूम्रपान जैसी घटना भी ग्रामीणों द्वारा बताई गई जिसकी पुष्टि बाद में जबलपुर संभाग उपायुक्त की जांच में की गई, जिसमें पाया गया की 2008 से विद्यालय में कोई भी विधिवत रिकार्ड संधारित नहीं है, विगत सत्र की छात्रवृत्ति विद्यार्थियों को प्राप्त नहीं हुई है, शासकीय फंड के आय व्यय में अनेकों अनियमितएं हैं, जिस पर अनुमान लगाया जा सकता है कि तत्कालीक प्राचार्य द्वारा कितने शासकीय फंड का गबन किया गया होगा? यह समस्त भ्रष्टाचार तत्कालीक प्राचार्य एवं शिक्षक कर्मचारियों की जुगलबंदी और सहमति से होता रहा है और जिसमें विभागीय उच्च अधिकारियों का भी सहयोग निरंतर दिया जा रहा है आज विद्यालय में कराए गए प्रयोगशाला भवन निर्माण एवं रिपेयरिंग कार्य में गलत पदार्थ का उपयोग किया जाने की शिकायत सीएम हेल्पलाइन एवं विगत सत्रों की समस्त कार्य की जानकारी हेतु आरटीआई लगी हुई है, जिसमें अधिकारियों द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा आज जनजाति कार्य एवं कल्याण विभाग भ्रष्टाचार विभाग बन चुका है? आए दिन खुलासे किया जा रहे हैं किंतु उच्च अधिकारी के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। शासन की रामराज लाने की मंशा पर सरेआम पानी फेरा जा रहा है। जैसा सामने लोकसभा चुनाव है, अगर इस विद्यालय मे यही स्थिति बनी रही तो कहीं न कहीं से स्कूल की राजनीति का चुनाव मे प्रभाव पड़ सकता है जिसे जिला निर्वाचन अधिकारी को संज्ञान में लेते हुए वैधानिक कार्यवाही की जानी चाहिए। अन्य यह वर्षों से जमे कर्मचारी अपनी राजनीतिक कर चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। सहायक आयुक्त ने तीन को दिये नोटिस कार्यवाही हुई एक पर.... विद्यालय में गुटबाजी, राजनीति एवं अनेको अनियमिताओं पर सहायक आयुक्त ने विद्यालय में शिक्षकों द्वारा मारपीट, गुटबाजी एवं राजनीतिकरण जैसी अनियमिताओं की पुष्टि कर नोटिस जारी किया किंतु किसी भ्रष्टाचारी पर कार्यवाही करना उनके बस में नही था। यह जांच तो दूर रही इसी बीच तत्कालीन प्राचार्य की शिकायत सहायत आयुक्त मण्डला मे की गयी कार्रवाई न होने पर जबलपुर संभाग उपायुक्त पर शिकायत की जहां जबलपुर संभाग उपायुक्त की टीम ने आचार संहिता के समय ही जिले में बिना कोई सूचना दिए जल्द से जल्द जांच की और जांच उपरांत विद्यालय की अव्यवस्थाओं एवं अनियमितताओं की सूची बनाकर दोषियों को कारण बताओं नोटिस जारी किया और उनके ऊपर कार्यवाही कर निलंबित कर दिया गया। किन्तु अन्य दोषियों के ऊपर कार्यवाही नही की गयी। पूर्व प्राचार्य शुभेंदु दास को पुनः कुछ दिनों बाद बहाली कर उन्हें प्राचार्य को उत्कृष्ट विद्यालय बीजाडांडी में प्रभारी प्राचार्य के पद पर नियुक्त किया गया, जहां सेवानिवृत प्राचार्य द्वारा सेवानिवृत्ति के उपरांत उन्हें जॉइनिंग दी गई किंतु प्रभार नहीं दिया गया वहां एक माह कार्यकाल करने के दौरान ही उन्हें सेवानिवृत्ति प्राचार्य के दो माह एक्सटेंशन आदेश होने पर उनकी नियुक्ति नए विद्यालय हाई स्कूल विजयपुर में कर दी गई, पर अन्य कर्मचारी जिन्हें विभागीय नोटिस मिला था वे आज भी राजनीति और गुटबाजी मे संलिप्त हैं। जिससे पीएमश्री पदर्जा प्राप्त विद्यालय का नाम धूमिल होने के साथ अध्ययन कर रहे बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है। समस्त प्रकरण से मालूम चलता है कि अधिकारी विद्यालय के विकास विद्यार्थियों की शिक्षा व्यवस्था के प्रति चिंतित न होकर पैसा और वजनदारी के अधीनस्थ है जिसकी पैसा और पहुंच ऊपर तक है उनके पक्ष में सारे आदेश हो रहे हैं? पूरा विभाग घोटाले भ्रष्टाचार और पैसों के लेनदेन में सनलिप्त है? कार्यवाही न होना अर्थात राजनीतिक हस्तक्षेप- वही सूत्रों की मानें तो शिक्षा विभाग के समस्त उठापटक में, भ्रष्टाचारों को खुला संरक्षण देने में एवं दोषियों पर कोई कार्यवाही न करने में राजनीतिक संरक्षण मिला रहा है। जहा पर समस्त भ्रष्टाचार उनके संरक्षण के तले किया जा रहा है यह बात कहां तक सत्य है जिसकी पुष्टि विभागीय अधिकारी कर सकते हैं? क्या शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में इस प्रकार का भ्रष्टाचार होना चाहिये, अगर होंते है तो छात्र क्या सीखेंगे और अगर इन जैसे भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्यवाही न करना कहां तक उचित है? और समस्त समाज में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह प्रश्न विचारणीय है।

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