रेवांचल टाईम्स – राज्य सूचना आयोग से जारी आदेश किया कि शासकीय नौकरी में नियुक्ति के समय लगाए गए जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज RTI Act की धारा 2 के तहत पब्लिक दस्तावेज है। इसे अक्सर अधिकारी धारा 8(1) (j) के तहत व्यक्तिगत दस्तावेज बता कर रोक देते है।
मेरे द्वारा पारित इस मह्त्वपूर्ण निर्णय में सहकारिता विभाग मे RTI आवेदिका को विभाग में कार्यरत एक अन्य महिला सहयोगी के जाति प्रमाणपत्र RTI के तहत देने के निर्देश दिए गए हैं।
A) शासकीय नौकरी में जाति के आधार पर नियुक्ति/ प्रमोशन आदि की व्यवस्था नियम- कानून अनुरूप होती है, यह विभाग में सभी के संज्ञान में होता है ऐसे में जानकारी व्यक्तिगत होने का आधार नहीं बनता है।
B) फर्जी जाति प्रमाणपत्र के रैकेट प्रदेश में उजागर होते रहे हैं ऐसी स्थिति में RTI के तहत प्रमाणपत्रों देने से इनकी प्रमाणिकता की पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित होगी साथ ही भर्ती प्रक्रिया में जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी
C) अगर जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध है तो ऐसी स्थिति में माननीय HC या SC के जानकारी रोकने के अन्य निर्णय यहां प्रभावी नहीं होंगे क्योंकि यहा जानकारी देने में लोकहित स्पष्ट है।
D) RTI Act की धारा 8 (1) j के अनुसार जो जानकारी विधानसभा या संसद को देने से मना नहीं कर सकते हैं वह जानकारी अधिकारी किसी व्यक्ति को देने से मना नहीं कर सकते हैं।
E) इस प्रकरण मे RTI आवेदिका ने जिस व्यक्ति की जानकारी माँगी है उसने SC ST Act के तहत जबलपुर में FIR दर्ज करायी है साथ ही छिंदवाड़ा तहसील कार्यालय ने एक अन्य RTI में जाति के प्रमाणपत्र संदिग्ध बताया है, ऐसी स्तिथि में प्रकरण में न्याय की दृष्टि से भी जाति प्रमाणपत्र RTI में देना चाहिए।
F) RTI आवेदिका को HC में चल रहे मामले मे भी जाति प्रमाणपत्र HC से प्राप्त हुए हैं ऐसी स्थिति में भी व्यक्तिगत जानकारी का आधार नहीं बनता।
G) धारा 11 तीसरे पक्ष से आपत्ति लेने की प्रक्रिया मात्र है सिर्फ आपत्ति के आधार पर ही जानकारी को रोकना गलत है। आपत्ति आने के बाद PIO को देखना है कि व्यक्तिगत जानकारी का आधार बनता है या नहीं। यहा सहकारिता विभाग के अधिकारी द्वारा जानबूझकर जानकारी रोका गया है इसीलिए RTI आवेदिका को विभाग से ₹1000 क्षतिपूर्ति देने के आदेश भी दिए गए है। EOM Shri राहुल सिंह